गीत/नवगीत

बुद्धि से जीती, दिल से टूटी

धन संपदा बहुत कमाई।
सोचो लाॅरी कब थी गाई?
प्रेम भाव है, कहाँ खो गया?
हावी,  पेशेवर  चतुराई।

स्पद्र्धा के पथ पर नारी।
भूल रही, अपनी ही पारी।
मातृत्व का भाव मर रहा,
प्रतियोगिता की है तैयारी।

युवावस्था संघर्ष में बीती।
प्रौढ़ अवस्था रीती-रीती।
शादी के सपने भी खोये,
खुद हारकर, दुनिया जीती।

प्रेम भाव था प्रस्फुट होता।
कैरियर में था लगाया गोता।
स्थिर हुई, अधिकारी बनकर,
घर का डूब गया है, लोटा।

सखी-सहेली, सजना, संवरना।
बहाने बनाकर, पिय से मिलना।
हिसाब किताब में सब छूटा,
संबन्धों को, प्रेम से सिलना।

बच्ची खोई, किशोरी भी छूटी।
युवती,  जीवन रण  ने लूटी।
काम करन को बाहर निकली,
बुद्धि से जीती, दिल से टूटी।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)