मैट्रो
रोज का सफर है मैट्रो का
हाँ जद्दोजहद जारी रहती है
लोगों के चढने उतरने की
किसी भी बखत लडने की
अरे!!!
लडना बाबू
सीट के लिए लडना
बड़े-बूढ़ों से बहस पर उतर आना
जिद और भ्रम लिये
बेवक्त आना बेवक्त जाना
संस्कृति, संस्कारों को
नहीं कभी सिंचना
सभागार में अश्लीलता पर
जोरदार ताली पीटना
बेशर्मी से सिर झुका कर
गाना बजाना
कुछ इसी तरह से टूटता
“वसुधैव कुटुम्बकम “का ताना बाना
दिखावा, पहनावा, स्टाईल
हर चेहरे पर फेक स्माईल
खाली सीट देख कहते
देखो बैठो सीट खाली हुई
हम कहते
“अभी हमारी उम्र नहीं हुई ”
हमारा तो
स्वच्छ भारत का अभियान चलता आया
चलता रहेगा
हर रोज़ थूकने वाला
मिलता है
शायद मिलता भी रहेगा