प्रेम में सनकपन
कात्यायनी जी की लेखनी से, यथा-
सच-सच बताना, तनु ! शादी के पहले तुम्हारी किसी से प्रेम सम्बंध थी या नहीं ।”
पति ने मनुहार के साथ टोका।
“ये क्या उटपटांग पूछ रहे हैं, जी !” नई नवेली तनु शर्माते हुये।
“अरे बताओ न ! पति-पत्नी के बीच कैसा पर्दा ? मेरे तो कई प्रेम-संबंध थे!”
“मैं भी एक से प्यार करती थी, पर वो तो मेरी बचपना थी ।”
भावावेश में तनु बता दी।
“बदचलन, बेहया, हरजाई ! तुम्हारे रंग-ढंग देखकर ही मैं समझ गया था कि शादी से पहले तुम खूब मौजमस्ती की होगी।”
“तुम्हारे तो कई प्रेम सम्बन्ध थे, तब तो तुम मुझसे कई गुना ज्यादा बदचलन हुए।” –पत्नी हिम्मत से जवाब देती है।
“ज़बान लड़ाती है….” पति ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ पत्नी के गाल पर रसीद कर दिया।
….. और अब से मारपीट का सिलसिला अन्तहीन चलता रहा, क्योंकि पत्नी जो बदचलन थी !
लेखक मनु लिखते हैं-
“सच्चा प्रेम होने की प्रतिबद्धता सिर्फ मर्द से ही क्यों ? ….या सिर्फ महिलाओं से ही अपेक्षा क्यों ? क्या जैसे को तैसे जवाब देना ही आस्था है या प्रतिबद्धता या अर्द्धआस्था या अंधआस्था या अतिरेक आस्था ?
क्या प्रेम में पागल बन जाना या हो जाना शोभनीय है ? पागलपन क्या जुनूनी अवस्था लिए है ? प्रेम में बेवफा…. प्रेम में विरक्ति…. कई वस्तुस्थितियां हैं, जिनके लिए ठोस तथ्य अबतक अनुत्तरित है !
जो भी हो, अगर प्रेमचंद रचित कथा ‘नेऊर’ को सामाजिक कहानी के बदले प्रेम कहानी कहूँ, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, मगर प्रेम का सही आकलन क्या हो ?
जीवन में प्रासंगिकता का उभरना या जीवन्तताबोधित लिए होना ‘प्रेम’ के सापेक्ष है या सापेक्षतर है या निरपेक्ष मान लिए है ! काश ! यह बातें प्रेमचंद भी समझ पाते !”
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के सुअवसर पर ऊपर वर्णित दोनों तथ्य वर्त्तमानश: प्रासंगिक तथ्य लिए है।
सच्चा प्रेम होने की प्रतिबद्धता सिर्फ मर्द से ही क्यों ? ….या सिर्फ महिलाओं से ही अपेक्षा क्यों ? क्या जैसे को तैसे जवाब देना ही आस्था है या प्रतिबद्धता या अर्द्धआस्था या अंधआस्था या अतिरेक आस्था ?
यथार्थ प्रश्न