नीलकंठ हो तभी कहाते
शिव भोले तेरी माया अपरंपार
मेरा नमन तुझको बारम्बार
जो भी शरण में आया तेरी
उसका हो गया बेड़ा पार
जब देवता और दानवों ने
समुद्र मंथन कर डाला
अमृत देवता पी गए
हलाहल आप ने पी डाला
हाथों में त्रिशूल और डमरू
जटा में तेरी गंगा बिराजे
सारे दानव डर के मारे
फिरते हैं सब भागे भागे
कैलाश के बासी हो तुम
साथ में मैया पार्वती
बिल पत्ती हैं तुम्हें चढ़ाते
साथ उतारते हैं आरती
शिव ही शव है शव ही शिव है
जो यह गूढ़ रहस्य जान गया
पाप धुल गए उसके सारे
जो अपने आप को पहचान गया
सारे आते दर पर तेरे
सब करते हैं जय जय कार
जिस सिर पर तू हाथ धरे
वो जाता भवसागर पार
भक्तों की पीड़ा हरते तुम
इस सृष्टि को तुम हो चलाते
विष पी गए थे सारा
नीलकंठ हो तभी कहाते
— रवींद्र कुमार शर्मा