संस्मरण

मेरे शहर का कैलाश मंदिर, महाशिवरात्रि के पर्व पर

मैं आपको, अपने शहर और अपने मोहल्ले के भव्य शिव मंदिर जो कैलाश मंदिर के नाम से जाना जाता है, से परिचित कराता हूं.
जिस मोहल्ले में मेरा बचपन, जवानी और जीवन के पचास बर्ष गुजरे उस मोहल्ले में स्थित है शंकर का यह मंदिर कैलाश मंदिर. इस मंदिर के नाम से ही मेरे इस मोहल्ले का नाम पड़ा कैलाश गज. एक बहुत बड़ा मोहल्ला जिसके बीच में है एक बहुत बड़ा चौक जो समय से साथ साथ संकी्ण होता चला जा रहा है. मोहल्ले में शादी ब्याह और कार्यक्रमों के सभी पंडाल इसी में लगा करते थे और अब भी लगा करते हैं.
इस मंदिर के नीचे ही एक चुंगी का प्राइमरी स्कूल होता था जहां मैं कक्षा पांच यानी फिफ्थ क्लास तक पढ़ा.
इस मंदिर के पुजारी इस समय श्री धीरेन्द्र कुमार झा जी है.
इनके पिताश्री जो स्वर्गवासी हो चुके हैं,का नाम मुझे अब याद नहीं घर पर पूजा पाठ में  आया करते थे. धोती कुर्ता,गमछा, पतला बदन, हंसता हुआ चेहरा. मेरी मां धार्मिक प्रवृति की थी ,जो भी त्योहार, व्रतों पर दान पुण्य देना होता था मुझे उनके घर देने को भेजती थी. उनका निवास मंदिर के धरातल पर ही था.
इस मंदिर का निर्माण संवत 1924 में कासगंज के  राजा दिलसुख राय बहादुर ने करवाया था . मंदिर निर्माण के साथ ही इसके आसपास का पूरा क्षेत्र कैलाशगंज कह लाया जाने लगा . धरातल से इस मंदिर की चोटी तक की ऊँचाई करीब 200 फुट है, इसने भगवान शिव की चतुर्मुखी मूर्ति धरातल से लगभग सवा सौ फुट की ऊँचाई पर स्थित है . जमीन से लेकर मूर्ती तक का पूरा आधार ठोस है, धरातल से शिवजी की चतुर्मुखी मूर्ति तक के गर्भ स्थल में किसी प्रकार का खोखलापन नहीं है, और यही पर दीप के आकार में शिवजी के चारों दिशाओं में उभरे मुखों की सफ़ेद संगमरमर पत्थर से निर्मित मूर्ति रखी गयी है. मूर्ति के समीप ही सफ़ेद संगमरमर पत्थर से ही निर्मित नंदी की मूर्ति स्थापित है . इसके अलावा मूर्ति के उत्तर व दक्खिन में क्रमश: गणेश व माँ पार्वती की सफ़ेद पत्थर से ही निर्मित आदमकद मूर्तियाँ स्थापित  हैं . इसके अलावा मंदिर के धरातल के प्रांगण में एक ओर काफी विशाल सरोवर है जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गयी हैं, सरोवर उपेक्षा के कारण ख़राब हालत में है .किसी समय कुंड जल से भरा रहता था.
मंदिर में ऊपर चढ़ने के लिए 108 सीढियाँ  हैं, सीढियाँ 70 फुट की ऊंचाई के बाद तीन भागों में विभक्त हो जाती हैं, बाईं ओर की सीढ़ियाँ मंदिर में ऊपर जाने के लिए व दायीं ओर की सीढ़ियाँ नीचे उतरने के लिए हैं .बीच में विश्राम स्थल बनाया गया है जिनका इस्तेमाल चढ़ते वक्त थक जाने वाले यात्री करते हैं .

महाशिवरात्रि पर्व और श्रावण मास के दौरान मंदिर में मेले लगते हैं, इन पर्वों पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ती है, सावन के पूरे माह में पड़ने वाले सोमवार को भक्तों की विशेष भीड़ रहती है . सावन के सोमवार और महाशिवरात्रि के दौरान भक्तजन कछला जी और सौरों जी से कांवरों में गंगाजल भरकर कोसों दूर की लम्बी पदयात्रा करके कैलाश मंदिर में शिवजी का जलाभिषेक कर मनौती मांगते हैं .
मंदिर के कमरों में एक कन्या पाठ शाला लगा करती थी जिसे कुलश्रेष्ठ साहिब चलाया करते थे.
गर्मियों के दिनों में हम दोस्त लोग शाम को मंदिर में जाकर ठंडी हवा का आनंद लिया करते थे. इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां अच्छी ठंडी हवा लगा करती थी और दूर दूर तक शहर दिखा करता था. घर छूटा, शहर छूटा कई बर्ष हो गए इस मंदिर में शिव के दर्शन करे बगैर. आज याद अा गई.
*ब्रजेश*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020