लघुकथा

छुआ-छूत

आज फिर सविता डरी निगाहों से उस चापाकल को निहारती है, कि उसे पानी भरने को मिलेगा या नहीं क्योंकि सविता के ससुर दो दिन पूर्व स्वर्ग लोक को सिधार गए | घर में चूल्हा तो ना सुलगेगी अपितु हम पानी तो पी सकते हैं, सविता के घर पानी की व्यवस्था ना होने की वजह से गाँव के सरकारी चापाकल में पानी भरने को जाती थी!वह छूत शरीर को लेकर पानी कैसे लाती क्योंकि गाँव के लोग इस छुआ -छूत को ज्यादा ही मानते है, लेकिन करें भी तो करें क्या, विवश होकर सविता ने चारों ओर अपनी नजर को फिरते हुए दबे पाँव से उस चापाकल पर पहुँची |घड़े मे पानी भरकर मन ही मन सोच रही थी कि चलो कम से कम पानी तो भर लिया और किसी ने देखा भी नहीं ज्यो ही पानी के घड़े लेकर पीछे मुड़ती है तो सग्गाे की माँ सामने आ खड़ी हुई मानो सविता का सामना किन्ही दानव से हुआ हो और हो भी क्यों ना क्योंकि सग्गाे की माँ बहुत बूढ़ी हो चुकी है किंतु दूसरों की खोट पर ऐसे बरस पड़ते हैं जैसे वह उनके घर की बड़ी अम्मा हो फिर वही रोब जमाते हुए सविता से कहती है तूने आज फिर पानी भर लिया, मैंने कहा था ना कि तू घड़े को नीचे रखकर किसी को बुलाकर पानी भरवाती | हे भगवान!मैं पूजा करने के लिए जल लेने आई थी, इस अछूत शरीर ने पूरे चापाकल को अपवित्र कर दिया अब खड़ी मुँह क्या देख रही है गुस्से से सग्गाे की माँ ने कहा | सविता मन दुखी कर घर को चली आती है| इस हल्ले को सुनकर काफी लोगों का जमघट आ पहुँचा सग्गाे की माँ ने घर से गंगाजल लाकर उस चापाकल को धोया और साथ में स्वयं पर छिड़ककर पवित्र किया| जल भरने के बजाय किसी ने पूछ लिया कि -क्या हुआ सग्गाे की माँ वह उन महिलाओं को कहती है अरे होना क्या है उस सविता ने छूत शरीर से इस चापाकल को अपवित्र कर दिया,इस बीच एक कुत्ते ने आकर उस नल के टपकते पानी को मुँह में सटाकर पी लिया तभी उनमें से किसी ने कहा अरे सत्यानाश!हो वह देखो फिर कुत्ते ने इस चापाकल को अपवित्र कर दिया “अब क्या होगा किसी ने चिंता प्रकट की “…तभी किसी ने कहा अरे,फिर से चापाकल को गंगाजल से पवित्र करो तभी सग्गाे की माँ ने कहा-ऐसी कोई बात नहीं है,”कुत्ता कोई आदमी है क्या जो तुम लोग खामखा परेशान हो रहे हो,यह तो जानवर है और जानवरों में कोई छुआ-छूत नहीं होते यह सुनकर सविता  अचंभित रह गई “|
—  राज कुमारी

राज कुमारी

गोड्डा, झारखण्ड