ख्वाबों के नादान परिंदे,
दूर देश से उड़ आते हैं।
पवन वेग से विचर विचर कर
मन मुंडेर पर चढ़ जाते हैं।
छतरी रंगबिरंगी जैसे
खड़ी खेत में कजरी जैसे
सरसों सा पुष्पित पीलापन
फूल रही हो बजरी जैसे
वायुयान से कभी क्षितिज पे
कोटर में कभी छिप जाते हैं
ख्वाबों के नादान परिंदे
दूर देश से उड़ आते हैं……..!!
कभी बने भोले से बच्चे
सहला जाये गालों पर
पलकों पे करें किलोल कभी
पंजे उलझाते बालों पर
सपनों के सौदागर इनको
झूठ -झूठ ही भरमाते हैं
ख्वाबों के नादान परिंदे,
दूर देश से उड़ आते है……!!!
कभी प्रवासी बंजारे से
मोहक सी इनकी हस्ती है
झरते हों चुपके कनक फूल
मदिरालय जैसी मस्ती है
बड़े बड़े वो शहंशाह भी
इनको नहीं पकड़ पाते हैं
ख्वाबों के नादान परिंदे,
दूर देश से उड़ आते है……!!!
— रागिनी स्वर्णकार(शर्मा)