ग़ज़ल
मेरा तुमसे और तुम्हारा मुझसे कहीं कोई वास्ता रहा होगा।
यूं बिछड़ के मिलें हैं आज फिर तुमसे कोई वास्ता रहा होगा।
यादों का मुकद्दर तो न जाने क्या होता है मगर सच है;
उनका हमारी अधूरी कहानियों से कोई वास्ता रहा होगा।
ख्वाबों में भी हम चाह कर किसी को बुला नहीं सकते फिर;
ज़िंदगी में जो होता है उसका लेखा पहले से कोई वास्ता रहा होगा।
ख्वाहिशें जितना भी हमें कुछ करने को प्रेरित करें मगर;
पूरी होती ख्वाहिश जो सहज ही उसका जीवन में कोई वास्ता रहा होगा।
दिल तो दिल है बात बेबात सहम जाता है कभी तो यूंही;
दिमाग सोच के करता है सब इसका असलियत से कोई वास्ता रहा होगा।
— कामनी गुप्ता