ग़ज़ल
द्वेष की आतिश बुझाना चाहिए
देशवासी खिलखिलाना चाहिए |
गर्व क्यों हो इन्तियाज़ी धर्म पर
सिर्फ मानव धर्म निभाना चाहिए |
बेइमानो की जरूरत तो नहीं
देश भक्तों का खजाना चाहिए |
झगडा’ तो बर्बाद करता देश को
शांति उद्भव का ज़माना चाहिए |
आदमी से आदमी अंतर घटा
शेष अंतर को मिटाना चाहिए |
विश्व में भारत सदा उज्वल रहे
देश अपना जगमगाना चाहिए |
अब दुखी मजलूम भी पीछे न हो
मुफलिसों की अब उठाना चाहिए |
लोग ‘काली’ फ़क्त संवेदी बने
नज़रिया कुछ शायराना चाहिए |
कालीपद ‘प्रसाद’
© ® सर्वाधिकार सुरक्षित