अनुबंध
मेरे नीरस जीवन का प्रणय हो तुम
रस छंदों में लिपटा हुआ अंतर्द्वंद हो तुम
विभक्ति हूँ मैं तुम्हारी अर्धचंद्र हो तुम
अलंकार से सुसज्जित मकरंद हो तुम
अतिश्योक्ति तो नहीं अनुप्रास हो तुम
श्यामल पटल पर अंकित अनुबंध हो तुम
भावनाओं की नौका में अल्फाज हो तुम
जीवन रूपी लहर का सुंदर प्रलंभ हो तुम
— वर्षा वार्ष्णेय