दुआओं में तुम्हारी चाह जो शामिल नही होती…
दुआओं में तुम्हारी चाह जो शामिल नही होती
हमारी ज़िन्दगी को ज़िन्दगी हासिल नही होती
अगर चलते नही तुम हर कदम पर हमसफ़र बनकर
भटक जाते हमें हासिल कभी मंज़िल नही होती
भला तब तक जवानी को जवानी क्या कहें जब तक
नज़र में जाम की मस्ती अदा कातिल नही होती
मुहब्बत वो मुहब्बत ही नही जो चाह से तन की
परे रह कर किसी की रूह में दाखिल नही होती
उठी होगी यक़ींनन ही ज़िगर में टीस कोई तो
पलक यूँ ही किसी की अश्क से बोझिल नही होती
बशर जिसने हक़ीक़त की ज़मीनी ज़िन्दगी जी है
उसे महसूस कोई भी कभी मुश्किल नही होती
उड़ाए झूठ जितनी तुहमतों की धूल ऐ बंसल
मगर छवि सच के सूरज की कभी धूमिल नही होती
सतीश बंसल
२०.०३.२०२१