सामाजिक

नारी जीवन की स्वायत्तता ,आत्मनिर्भरता एवं आत्मसम्मान (आलेख)

नारी जीवन की स्वायत्तता, आत्मनिर्भरता एवं आत्मसम्मान
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यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता ।
यत्रैतास्तु न पूज्यंते सर्वास्त फला: क्रिया ।।
अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं जहां ऐसा नहीं होता वहां अभीष्ट फलों की प्राप्ति नहीं होती अर्थात समस्त यज्ञार्थ क्रियाकलाप व्यर्थ हो जाते हैं ।
स्त्री सृजन करता है ,प्रकति है, धुरी है
इस समाज का केन्द्रबिन्दु है।
यदि किसी परिवार समाज की स्थिति को देखना हो तो वहां की स्त्री की दशा मनोदशा को देखना होगा । स्त्री घर परिवार समाज का दर्पण भी है ।
एक समय था जब समाज में फैली कुप्रथाओं, कुरीतियों के संवाहक पुरुषों ने नारी को सामाजिक सुख- सुविधाओं शिक्षा और अन्य अधिकारों से वंचित कर रखा था। बच्चियों के जन्म के समय मातम सा छा जाता था ।स्त्री को सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने का अधिकार प्राप्त नहीं था पर्दे की सतह में लिपटी नारी घूंघट के भीतर ही समाप्त हो जाती थी ।
बाल विवाह, सती प्रथा जैसी प्रताड़ना जयंती नारी शक्ति की सजना होकर भी खुलकर जीने में असमर्थ थी पिछड़े अंचलों में नारी की स्थिति तो और भी अधिक दयनीय थी ।
ऐसे में स्त्रियों के हितार्थ पहला ठोस कदम राजा राममोहन राय ने उठाया और सती प्रथा को समाप्त किया धीरे-धीरे बाल विवाह पर भी रोक लगी और पर्दा प्रथा भी समाप्त हुई। पर क्या आज भी नारी पुरुषों के साथ पुरुषों की भांति जी रही है ? क्या ? नारी जीवन की स्वायत्तता आत्मनिर्भरता और उसका आत्मा विमान पुरुषों के समान है ? विचारणीय है !
आज स्त्री भले ही चांद पर पहुंच गई हो किंतु आज भी वह विकास की मुख्यधारा में पूर्णरूपेण शामिल नहीं है । कुछ देशों में आज भी गुलामी की प्रथा है । आतंकवादी नक्सलवादी इनका शोषण करते हैं ।
स्त्री हमारे समाज का वह अंग है, जिसके बिना सब कुछ अपूर्ण है । घर परिवार, समाज की धुरी है । वह सामाजिक व्यवस्था का आधार स्तंभ है । आज आवश्यकता है नारी जीवन की स्वायत्तता और आत्माभिमान पर बल देने की । स्त्री विकास का केंद्र है, वर्तमान और भविष्य भी।
किंतु सुव्यवस्थित एवं सुप्रतिष्ठित जीवन के अभाव में सुव्यवस्थित परिवार और समाज की रचना नहीं कर सकती । आवश्यकता है नारी सशक्तिकरण की उसकी गरिमा एवं स्वायत्तता और सम्मान के हित एक ठोस कदम की ,एक पहल की ।
बलात्कार ,यौन उत्पीड़न नाबालिगों और मासूम बच्चियों के दैहिक और मानसिक शोषण के खिलाफ कोई ठोस और सार्थक कदम अर्थात कानून की ।

महिला और पुरुष को किताबी तौर पर बराबरी का अधिकार तो है पर क्या ? वास्तव में वह उसके समकक्ष है ; नहीं ! वास्तव में स्त्री की स्वायत्तता आत्मनिर्भरता के प्रति समाज के नजरिए में बहुत परिवर्तन नहीं हुआ है ,उसे दूसरे दर्जे का ही नागरिक माना जाता था ,माना जाता है । बालक बालिका की परवरिश में आज भी कहीं-कहीं बहुत भेद किया जाता है । एक बच्ची के जन्म पर प्रत्येक उसे लक्ष्मी, सरस्वती का संबोधन देते हैं पर वही आगे चलकर बहुत से परिवारों में वह बोझ बन कर रह जाती है । क्यों बौद्धिक विमर्श में समानता के नाम पर केवल चर्चाएं तो होती है ।
कविगण स्त्री के नाक- नक्श का वर्णन करते हैं उसकी मानवीय संवेदना बुद्धिमत्ता और भीतरी मर्म को क्यों नहीं पहचानते ,जो वीर प्रसूता है ,जिसमें मातृत्व भाव है, निस्वार्थ सेवा करती है ,उसे यह पुरुष जाति मात्र अंकशयनी बनाकर गर्वित और आनंदित क्यों होता है । जो सृष्टि है ,जो सर्जना का आधार है उस पर कुदृष्टि का प्रहार क्यों होता है ?

परिवार में प्रत्येक के मन का करने वाली नारी , सबका ख्याल रखने वाली नारी रखती है उसके मन का कोई क्यों नहीं करता । वैसा ही एक मन तो उसके पास भी है ।

निष्कर्ष यह निकलता है कि नारी को स्वयं सिद्धा बनना होगा । यह याद करना होगा कि जिस नारी शक्ति के रूप में परम् पिता बृह्मा जी ने सृष्टि की रचना की ,जो सृष्टि का मूल है उसकी स्वायत्तता आत्माभिमान और आत्मनिर्भरता किसी की मोहताज नहीं है ?
इस ओर प्रत्येक नारी को स्वयं कदम बढ़ाने होंगे।

शिक्षा का हथियार थाम कर आगे बढ़ना होगा ।
मैं स्वयं की इन पंक्तियों से अपनी बात को इस तरह समझाना चाहती हूं –
महिमा – गरिमा से नारी की
गौरव का अनुभव करते हैं ।
इसकी हर एक दृष्टि से ही,
अध्याय बदलते रहते हैं ।
थककर भय से हारा – हारा ,
मानव जब राह न पाता है ।
जाग्रत करती साहस भरती,
प्रेरणा प्राणमय पाता है ।
बोलो इन अनुदानों का तुम,
प्रतिदान चुकाओगे कैसे
नारी ममता बल और सम्बल
इसको झुठलाओगे कैसे ?

किसी एक दिन महिला दिवस मना कर महिलाओं का सम्मान कर उनकी स्वायत्तता, आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान का डंका बजाने से अच्छा है कि उन्हें प्रति दिन, प्रति पल ये सम्मान दें क्योंकि इसकी वे हकदार हैं।

बच्चियों की शिक्षा का विस्तार नारी उत्थान में मील का पत्थर साबित होगा । इस लिए उनकी शिक्षा सुरक्षा का समुचित प्रबंध होना चाहिए इसे प्राथमिकता देकर मुख्यधारा से जोड़ा जाना चाहिए ।
मंजूषा श्रीवास्तव” मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016