कविता

बोलो सा -रा-रा- रा

बोलो सा रा रा रा
उड़ते बादल रंग रंगीले , हुई रंगीली दुनियाँ,
बच्चों के सपने रंगीले ,रंग में भीगी दुनियाँ |
बोलो सा रा रा रा

दशों दिशा में रंग के बादल उमड़ घूमड़ कर बरसे
प्रेम रंग भीगे नर – नारी , झूमे जियरा हुलसे |
बोलो सा रा रा रा

बहे प्रेम की गंगा – यमुना , नफ़रत सब बह जाए ,
महर – महर अमराई महके , कोयल फाग सुनाए |
बोलो सा रा रा रा

जीजा – साली भंग चढ़ाए , देवर – भाभी गाये ‘
साजन सजनी हसि -हसि खेलै, ससुरा मन बौराये |
बोलो सा रा रा रा

©मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016