कविता

तोड़ो ..चुप्पी को

सच कहना एक साहस है
जाति के इस समाज में
सच सुनना भी अपराध है
अंध श्रद्धा के आवरण में
हर जगह जातीय श्रेष्ठता का
पहारा है, स्वतंत्रता, समानता
एक परिहास है असहाय
जनता के साथ, इस झुंड में।

अपमान, तिरस्कार, घृणा
ये आम बात समझते हैं,
वो मनु परंपरा की गोद में
पला, मशगूल भोगवादी,
झूठ हर जगह रचते हैं
भेद – विभेदों की ओट में
अपने को अभेद, अजेय मानते
उनकी जिंदगी एक धोखा है
ज्ञान की रोशनी में,
तर्क – वितर्क से दूर
छुपके – छुपके से चलते हैं
स्वार्थ के ये जातिगर,
मंच पर अपनी उद्दंडता दिखाते
जाति दंभ ही शासन तंत्र है,
प्रश्न पूछनेवाले पर फूँकते हैं
पेड़ के पीछे रहकर यह षडयंत्र का जहर,
हजारों सालों की चुप्पी
चुप्पी ही रह गयी है
इस मूक जनता में ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।