तोड़ो ..चुप्पी को
सच कहना एक साहस है
जाति के इस समाज में
सच सुनना भी अपराध है
अंध श्रद्धा के आवरण में
हर जगह जातीय श्रेष्ठता का
पहारा है, स्वतंत्रता, समानता
एक परिहास है असहाय
जनता के साथ, इस झुंड में।
अपमान, तिरस्कार, घृणा
ये आम बात समझते हैं,
वो मनु परंपरा की गोद में
पला, मशगूल भोगवादी,
झूठ हर जगह रचते हैं
भेद – विभेदों की ओट में
अपने को अभेद, अजेय मानते
उनकी जिंदगी एक धोखा है
ज्ञान की रोशनी में,
तर्क – वितर्क से दूर
छुपके – छुपके से चलते हैं
स्वार्थ के ये जातिगर,
मंच पर अपनी उद्दंडता दिखाते
जाति दंभ ही शासन तंत्र है,
प्रश्न पूछनेवाले पर फूँकते हैं
पेड़ के पीछे रहकर यह षडयंत्र का जहर,
हजारों सालों की चुप्पी
चुप्पी ही रह गयी है
इस मूक जनता में ।