“क्रोध”
क्रोध बेशक दुष्ट बुद्धि होता हैं, परंतु मन की बात जुबां पर लाने का जरिया भी होता हैं। क्रोध से वर्षों पुरानी तपस्या बिगड़ जाती हैं। सारे कर्मो पर पानी फेर जाता है। लाख अच्छे काम कर लो,,,, एक क्रोध काफ़ी होता हैं सारे संघर्ष को क्षण में नष्ट करने के लिए। सबसे मज़ेदार बात तो ये है कि कभी अपना आपा खो के तो देखो लोग तैयार बैठे होंगे उस ज्वाला में घी डालने के लिए। इतनी होशियारी से फ़ायदा उठाएंगे और बिना कुछ किए ही उस कहानी के हीरो बन जाएंगे | बेहद अजीब सी व बहुत ही मुश्किल सी है यह भावना, ना ही सहन होती हैं और यदि बाहर निकाल दो तो तिनका-तिनका भस्म कर देती हैं। ना ही स्वयं का होश होता हैं और ना ही शब्दों का। अंत सदैव विनाशकारी ही होता हैं।
क्रोध में हुई हर घटना, हर शब्द गलत होते हैं और ये भी तय है कि उसका परिणाम भी अवश्य गलत ही होगा। माना कि कुछ समय पश्चात चीजे पुन: अपनी जगह आ जाती हैं। परंतु कहे गए वो हर शब्द ज़िंदगी भर पीड़ा ही देते हैं। वो शब्द ना तो मन से निकलते हैं ओर ना ही वापस लिए जाते हैं | यह बात तो निश्चित है की वह केवल पीड़ा ही देते हैं |
आप चाहे कितना ही प्रयास क्यों ना करलो आप जीवन में हर एक व्यक्ति को खुश नही रख सकते | एक गलती करके देखो तो लोग भागे आएंगे तमाशा देखने। बड़ा ही दुष्ट हैं ये भाव तूफ़ान की तरह बसी बसाई दुनियां उजाड़ देता है। क्रोध में किए गए हर फैसले गलत तो होते ही है परंतु हर व्यक्ति अपने जीवन में ऐसे मोड़ जरूर आता है| जहां कुछ पर वह अपना आपा खो देता हैं |वह सोचता है कि बस सहन करके भी क्या मिल गया। अब बिगाड़ ही देते हैं।
यह पूरा ब्रह्मांड लेन देन पर चलता है। हर एक व्यक्ति यह आशा रखता है कि यदि वो संघर्ष कर रहा है तो उसके आसूं भी तो कोई पोछे। यदि वह निरंतर सबको खुश रखने का प्रयास कर रहा है तो उसे भी सुख मिले। जब यह चीजे बिगड़ जाती है तो मनुष्य अपना आपा भी खो देता है उस समय उसे यह डर भी नहीं रहता कि शब्दों का परिणाम क्या होगा।यह चीज़ें सिर्फ़ तभी ही संभाली जा सकती है जब एक व्यक्ति क्रोधित मनुष्य को शांति पूर्वक समझे। उसके हालात की दशा को जाने। उसे मार्गदर्शन व सहानुभूति दे, और उसकी पीड़ा को जानने का प्रयास करे। पर यदि दोनों तरफ से क्रोध हो तो बात बिगड़ जाती है। समस्या बढ़ जाती हैं। ओर विनाश निश्चित है।
— रमिला राजपुरोहित