कविता

कारवां गुज़र गया

आज का दिन फिर यूं ही गुजर गया।
कतरा-कतरा करके जिंदगी गुजर गया।।
बेमतलब-सी इस जिंदगी क्या करें।
जिसमें मक़सद कोई न रह गया।।
जो तुम न शामिल हुए मेरे सफ़र में।
सफ़र में बस सफर ही रह गया।।
किसका है ये कुसूर तकदीर या तदबीर।
बस यही सवाल मेरे जेहन में रह गया।।
जिंदगी की जद्दोजहद में सुकुन कहीं खो गया।
हम हैरान रह गए और जिंदगी का कारवां गुजर गया।।
—  विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P