कल्पना की होली
तेरे संग मैंने खेली ,
मेरी कल्पना की होली ।
यही बात मैंने अब तक ,
तुम से नहीं है बोली ।।
कोई रंग ना बिखेरा ,
ना गुलाल ही उड़ाया ।
सुंदर सी रूप तेरा ,
बस प्रेम से सजाया ।।
मेरी कल्पना से निकलो ,
आ जाओ खेलों होली ।
यही बात मैंने अब तक ,
तुम से नहीं है बोली ।
— मनोज शाह मानस