गीतिका/ग़ज़ल

कल्पना की होली

तेरे संग मैंने खेली ,
मेरी कल्पना की होली ।
यही बात मैंने अब तक ,
तुम से नहीं है बोली ।।
कोई रंग ना बिखेरा ,
ना गुलाल ही उड़ाया ।
सुंदर सी रूप तेरा ,
बस प्रेम से सजाया ।।
मेरी कल्पना से निकलो ,
आ जाओ खेलों होली ।
यही बात मैंने अब तक ,
तुम से नहीं है बोली ।
— मनोज शाह मानस 

मनोज शाह 'मानस'

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