संयुक्त परिवार
फोन पर शिकायती लहजे में उमा बोली – “माँ तुम्हारी सलाह पर संयुक्त परिवार से अलग होकर मैं सुखी नही बल्कि ज्यादा ही परेशान हो गई थी । कभी आटा खत्म] तो कभी सब्जी मसाले के अभाव में आये दिन परेशान होकर वापस ही अपनी सासू माँ के पास आ गई हूँ ।”
मन्दिर से आकर घर में प्रवेश करते हुए उमा की बातें सुनकर सासू माँ ने कहा- “अच्छा किया जो वापस आ गई” तुझे परेशान देखकर मैंने ही बेटे राकेश को समझाते हुए एक माह के लिए जरूरी आटा, दाल, मसालों के साथ तेरा तथा बेटे का सामान बाँधकर किराये के मकान में खुशी-खुशी विदा किया था, ताकि संयुक्त परिवार में सबके सामूहिक सहयोग से काम करने और अकेले रहने में अंतर को महसूस कर सके । सुबह का भुला शाम को लौट आये तो भुला नही कहाता बहूँ।”
वे आगे बोली – “तेरे दादा स्वसुर कहा करते थे कि हमारे देश की सनातन संस्कृति की जड़ें संयुक्त परिवारों में है, जहाँ रहकर ही सबको आपसी स्नेह और सहयोग की समझ आती है ।”
उमा एकाकी और संयुक्त परिवार में फर्क समझ चुकी थी ।
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला