ग़ज़ल
ठोकरें खा के संभलना सीखा |
वक्त के संग में ढलना सीखा |
अब नहीं डर मुझे जमाने से –
संग जमाने के बदलना सीखा |
रोक पाये ना जमाना हम को –
हमने काँटो में है चलना सीखा |
अब अंधेरों से नही डर लगता –
जुगनुओं जैसे चमकना सीखा |
हूँ’मृदुल ‘मैं मगर कमज़ोर नहीं-
आग बन हमने दहकना सीखा |
©मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल ‘
लखनऊ ,उत्तरप्रदेश