कविता

नव भोर सुहानी बिखरी सी

नव भोर सुहानी बिखरी सी
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पीली – पीली फूली सरसों ,
ली ओढ़ धरा ने चुनरी सी |
बागों – बागों बगरा बसन्त,
छायी हरीतिमा गहरी सी |
बिखरा चहुँओर बसन्ती रंग,
अलियों ने कुसुमों को चूमा –
सूरज ने फिर अंगड़ाई ली ,
नव भोर सुनहरी बिखरी सी |

अलमस्त बहारें झूम उठी ,
बह रही मलय भी महकी सी |
सज गयी धरा नव सुमनों से,
हर दिशा लगे है चहकी सी |
फागुन के रंग हुए गहरे ,
मन मे उमंग की लहरों सी –
बासन्ती मन मनुहार करे ,
ज्यो रस गागर हो छलकी सी |
© मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल ‘
लखनऊ ,उत्तरप्रदेश

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016