काश
कैसा ये हुड़दंग मचा है
गाँव शहर हर ओर,
गाँव गली हर डगर डगर
अंजाना सा शोर।
मस्त हैं अपने में सब
जब से हुआ है भोर,
उछलकूद रहे हैं सारे
बूढ़े बच्चे मोर।
नहीं किसी की उत्सुकता का
जैसे कोई छोर,
एकदूजे को करता जाता
रंगों से सराबोर।
जैसे आज मिटा देंगे
हर ऊँच नीच की दीवारें,
एक जगह लाकर छोड़ेंगे
हम सबकी दीवारें।
काश। हमारी ये मंशा
हो जाती यदि पूरी,
सुख की नींद हम सो पाते
अपना पाँव पसारे।