गज़ल
दरिया ए इश्क़ में उतर जा सोचता है क्या
इस इब्तिदा की देखते हैं इंतिहा है क्या
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झूठ बोलने की सज़ा दे तो रहे हो
सच सुनने का किसी में यहां हौसला है क्या
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पुलाव हैं ख्याली ये बातें उफ़क की सब
आसमां ज़मीं से आज तक मिला है क्या
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लगातार बदहवास हो के दौड़ता है क्यों
ए वक्त तेरा भी कोई अपना खो गया है क्या
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साया भी साथ छोड़ दे ये मरहला है वो
फिर हमसफर क्या चीज़ है और काफिला है क्या
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आभार सहित:- भरत मल्होत्रा।