धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

द्वेष मिटा सबको गले लगाने का संदेश है होली

होली नाम से ही हृदय में रंगों का भाव उमड़ पड़ता हैं।सारे बैर भाव को मिटाकर गले लगाने का त्यौहार होली फाल्गुन मास में मनाया जाता है।होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन होता है।होली त्यौहार का प्रमाण शास्त्रों से प्राप्त होता है।राधा-कृष्ण की होली जो पुरातन समय में खेली गयी थी वह आज भी जीवंत है।राधा और कृष्ण द्वारा खेली गयी होली को देखने एवं उसमें शामिल होने भगवान शिव के साथ समस्त देव शामिल हुए थे।इन्द्रादि देव,इन्द्राणि, सर्प,गंधर्व सभी झूम उठे थे।एक ऐसा समय जब समस्त ब्रह्माण्ड रंगमय हो गया था।ऐसे पलों के कल्पना मात्र से हृदय में शान्ति का वास हो जाता हैं।ब्रज में आज भी प्रत्येक वर्ष यह त्योहार लगभग एक सप्ताह तक धूमधाम से मनाया जाता है और इसका समापन रंगपंचमी के दिन होता है।बसंत ऋतु का आगमन जैसे ही होता है राधा-कृष्ण के अद्भुत एवं अकल्पनीय प्रेम की धरती ब्रज में रंग और उमंग का प्रवेश हो जाता है।इस दृश्य में सराबोर होने भारत के कोने कोने से ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक भागों से भी लोग पँहुचते है।लोग इस पावन पल के साक्षी बनते एवं कृपा पाते हैं।बसन्त पंचमी के दिन वृन्दावन स्थित बांके बिहारी जी के  पावन मंदिर में भक्तों द्वारा जी-भर के गुलाल उड़ाया जाता है।चालीस-पचास दिनों तक यहाँ होली का आनंद लिया जा सकता है।वृन्दावन के कण-कण में विराजने वाले श्री कृष्ण की महिमा निराली है।होली में भक्तों से भरा नगर अबीर-गुलाल लपेटे राधा-कृष्ण के जयकारों से गूँजता रहता हैं।
            बरसाना श्री राधारानी का पावन गाँव यहाँ पर लठ्ठ मार होली विश्व प्रसिद्ध है।होलिका दहन से पाँच दिन पूर्व से मनाई जाने वाली इस होली की कहानी पाँच हजार साल से भी पुरानी है।श्री कृष्ण ब्रज को छोड़कर द्वारिका चले गए थे।अपने लिए अवतार के अनुसार वे अपने कर्मो से बंधे थे पर वे जब बरसाना वापस आये उस समय होली का समय था।तब कृष्ण के बिछड़ने से दुखी राधा और उनकी सखियों ने उनके वापस आने पर अपने गुस्से का इजहार किया।राधा व सखियों ने हाथों को लाठी लेकर लठ्ठमार होली खेली।पाँच हजार से भी ज्यादा वर्षो की पुरानी परंपरा आज भी उसी रूप में बरकरार है।इस लठ्ठमार होली में महिलाएं राधा जी की सखियाँ होती है जो लठ्ठ लेकर पुरुषों को पीटती है और पुरुष अपने सिर पर ढाल रखकर खुद का बचाव करते है।
          पूरे ब्रज में अलग-अलग जगह अपने अपने परम्पराओं के अनुसार होली मनाई जाती है कही अबीर की होली तो कही लड्डू की होली,कही पुष्प की होली तो कही पत्र की होली और ये सारी होलियाँ पूरे विश्व को अपने पुरातन संस्कृतियों की ओर आकर्षित करती है।
काशी की होली भी बड़ी निराली है।बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी में फाल्गुन शुक्ल की एकादशी से ही होली का त्यौहार बड़े धूम-धाम एवं हर्षोल्लास के साथ प्रारम्भ हो जाता हैं।यह एकादशी रंगों से मनाने के कारण रंगभरी ग्यारस या रंगभरी एकादशी कहलाती है।रंगभरी एकादशी के दिन ही बाबा विश्वनाथ का गौना कराकर काशी आगमन हुआ था।विश्वनाथ जी ने मैया पार्वती का हिमालय से गौना करा कर अपनी नगरी काशी पहुँचे तो भक्तों संग जम के होली खेले।आज भी वही परंपरा बरकरार है।भक्त खूब झूम के बाबा के जय-जयकार के साथ होली खेलते है।विश्वनाथ जी एवं माता पार्वती के मूर्तियों को पालकी पर बिठा गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाली जाती है।350 वर्ष से भी ज्यादा समय से यह होली ऐसे ही चलता आ रहा है।जिस प्रकार किसी के विवाह में सभी रस्में कुछ दिन पूर्व या सप्ताह दिन पूर्व से ही शुरू हो जाता है हल्दी आदि कर्मठ किये जाते है, वैसे ही बाबा के विवाह की भी तैयारी 5 दिन पूर्व से ही हो जाती है।काशी की इस रंगभरी एकादशी ले दिन एक और अद्भुत होली का दृश्य यहां प्राप्त होता है- काशीवासीयों का भोले बाबा के साथ महाश्मसान पर चिताओं के भस्म के साथ होली खेली जाती है
         यह तो कुछ खास जगहों पर होली के मनाये जाने के तरीकों पर नजर रहा पर इस पावन होली का अपना एक प्राचीन इतिहास रहा है।प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नामक एक दुष्ट असुर हुआ।प्रजा उसके अत्याचार से त्रस्त थी।उसने अनेक वर्षों तक ब्रह्मा जी का घोर तप किया।उसके तप से ब्रह्माजी प्रसन्न हुए एवं दर्शन देकर वर माँगने को कहा तब हिरण्यकश्यप ने प्रणाम कर ब्रह्मा जी से बड़ी चालाकी से वर माँगा की अगर आप प्रसन्न है तो आपके द्वारा बनाए किसी भी प्राणी-मनुष्‍य, पशु, देवता, दैत्‍य,नाग,गंधर्व किसी से मैं न मारा जा सकूँ।मुझे न कोई दिन में मार सके न ही रात में मार सकें।न मैं किसी अस्त्र से मारा जाऊ न किसी शस्त्र से।न मैं घर के अंदर मारा जाऊ न घर के बाहर।भूमि,आकाश,स्वर्ग,पाताल में भी कोई मेरा बाल बाका न कर सके।हिरण्यकश्यप के इस मूर्खतापूर्ण वरदान मांगे जाने पर ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की जो इस संसार में जन्म लिया है उसे एक दिन संसार से जाना ही है।पर पाप के मार्ग पर चल रहे उस राक्षस की आँखों पर पट्टी बंध गयी थी और उसने ब्रह्मा जी को यही वरदान देने को कहा।ब्रह्मा जी ने मुस्कुराएं एवं वरदान दे  दिए।वरदान को पाकर उसका अत्याचार और बढ़ गया।उसने अपने राज्य में देवताओं की पूजा पर रोक लगा दी।पापवश वह भगवान विष्णु का घोर विरोधी हो गया।समयांतराल में उसे पुत्र हुआ जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया।प्रह्लाद बचपन से ही धर्म के उपासक हुए।हिरण्यकश्यप जितने विष्णु के घोर विरोधी प्रह्लाद उतने उनके उपासक व प्रेमी।प्रह्लाद भगवान विष्णु की अनन्य भक्त हुए।हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों बार समझाया कि वह विष्णु का पूजन छोड़ मेरी पूजन करें।पर प्रह्लाद उन्हें ही सिखाने लगते की विष्णु भगवान बड़े दयालु है वे उनकी शरण मे चले जाएं उन्हें क्षमादान मिल जाएगा।हिरण्यकश्यप के राज्य में यह खबर फैल गयी कि उनका पुत्र ही विष्णु जी का भक्त है।हिरण्यकश्यप ने इसे अपना अपमान समझा और प्रह्लाद को मार डालने की कई जतन किये जैसे पहाड़ो से नीचे फेंक देना।कड़ाही के उबलते तेल में डाल देना पर श्री हरि विष्णु हमेशा प्रह्लाद की रक्षा करते रहे।अंततः हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को मारने की बात कही।होलिका को वरदान स्वरूप आग में न जलने का एक चादर मिला हुआ था।उस चादर को ओढ़ के बैठ जाने पर आग का कोई प्रभाव नहीं होता था। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में बैठ गई पर फिर चमत्कार हो गया। विष्णुजी की कृपा से वह चादर हवा के झोकों से होलिका के शरीर से उड़कर प्रह्लाद पर लिपट गया।प्रह्लाद बच गए होलिका जल कर भस्म हो गयी।तब से आज तक होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन लोग एक जगह जुट कर मनाते है।लकड़ी,सूखा तिलहन,घास और गोबर के उपले आदि के ढ़ेर को रात में लोग जलाकर होलिका दहन करते हैं।बाद में जब प्रह्लाद को हिरणकश्यप ने स्वयं मारना चाहा और बोला देखते है तेरे विष्णु तेरी रक्षा कैसे करते है तब श्री हरि विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर संध्या काल में द्वार के चौखट पर अपने पैरों पर लिटाकर अपने नख से मार डाला एवं प्रह्लाद को वहां का राजा बनाया।
होली का पर्व सन्देश देता है कि हम किसी का बुरा न करें।होली के दिन एक दूसरे पर रंग,अबीर,गुलाल आदि डालते है।प्रेम स्नेह का यह गुलाल सभी दुष्मनियों को दूर कर गले लगाने का भी संदेश देता है।लोग एक दूसरे के घर जा-जाकर बड़ो का आशीर्वाद लेते है एवं छोटो को आशीर्वाद एवं प्यार प्रदान करते है।इस अवसर पर हिन्दी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में लोग गीत गाते है,नृत्य करते है।ढोल,मृदंग से गाँव व शहर की गलियाँ गूंज उठती है।इस अवसर पर घर घर मालपुआ,पूरी,मिठाई एवं अन्य पकवान बनाये जाते है।श्री हरि को लोग पकवान को भोग स्वरुओ अर्पित कर स्वयं खाते है।इसके अलावा लोग समोसे,पकौड़े,दहीबड़ा जैसे अन्य पकवान भी बनाते है।
इस वर्ष 2021 की होली कोरोना जैसे वैश्विक महामारी में है इसलिएअपना एवं दूसरे का ध्यान रखना हमसभी का विशेष कर्तव्य है।सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का भी पालन हमे सख्ती से करना चाहिए।होली है जरूरी,मास्क और दो गज की दूरी भी है बेहद जरूरी।सभी स्वस्थ रहें, मस्त रहे,वैश्विक महामारी से बचे रहे एवं होली पर्व जो संदेश देता है उसके अनुसार सभी मिल-जुल कर रहे।
✍️ राजीव नंदन मिश्र “नन्हें”

राजीव नंदन मिश्र (नन्हें)

सत्यनारायण-पार्वती भवन, सत्यनारायण मिश्र स्ट्रीट, गृह संख्या:-76, ग्राम व पोस्ट-सरना, थाना:-शाहपुर,जिला:-भोजपुर बिहार-802165 मोo:-7004235870