होलिका का राजधर्म
होलिका ने
जिनकी नमक खाई,
उनके लिए
राजधर्म निभाई थी,
किन्तु प्रतिवर्ष
एक नारी को
बारम्बार
जला कर
हम कौन सा
धर्म
निभा रहे हैं ?
यह प्रश्न मन में
बार-बार
टहकता है।
रंगभेद
खत्म करने के लिए
‘रंगपर्व’ के प्रति
सादर नमन !
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कहने को
वो मित्र हैं,
अकस्मात टकरा जाए,
तभी हाय-हैलो करते हैं;
अँधेरा तो
यहाँ दिल में है
और मंदिरों में
दीये जलाते हैं !
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एक समय तो
पटना में
रहते वक्त
अर्थाभाव कारण
दो माह तक
सिर्फ़ ‘आलू’
उबाल कर खाया था,
उस पर ईंधन
खत्म हो गयी थी,
पर आँसू ही
सलामत थे !
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