गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरे साथ चलेंगे क्या?
रस्ते और मिलेंगे क्या?

बहलाएंगे, फुसलाएंगे,
रहबर भी छलेंगे क्या?

मन है सारे राज खोल दूं,
लेकिन होंठ हिलेंगे क्या?

जाकर पूछो परवानों से,
शम्मा संग जलेंगे क्या?

मुरझाए इन बागों में,
वापस फूल खिलेंगे क्या?

पथराईं हैं आँखें ‘जय’,
देखें, ख़्वाब फलेंगे क्या?

— जयकृष्ण चाँडक ‘जय’

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से