शब्दबाण
टीवी पर महाभारत देखने में पूरा परिवार व्यस्त था ।उसे प्यास बड़े जोरों की लगी थी। परंतु पानी का जग खाली था। काश किसी ने उसके अब तक की गई सेवा के बदले एक चूल्लू पानी ही दिया होता।
क्यों उसकी प्यास कोई बुझाए ? उसके अपराध भी तो जघन्य थे। सती साध्वी सी सुदर्शना के चरित्र पर लांछन के छींटे उसने डाले थे। अप्रैल फूल मनाने के बहाने अपने मित्र को गुलाबी साड़ी का रहस्य बड़े ही गोपनीय तरीके से बढ़ चढ़ कर नंदीश को बताया था।
आँखों से आँसू बह रहे थे एवं वर्षों पहले की घटना चलचित्र की तरह दिमाग में तैर रही थी।
“अररे! यह साड़ी तो गोपाल को खरीदने में मैंने ही मदद की थी । मुझे नहीं पता था कि वह भाभी जी के लिये खरीद रहा था। यकीन मानों जरा भी पता होता तो मैं उसे मना कर देता । लेकिन भाभी जी को भी तुम्हारे मित्र से तोहफा कूबूल करने की क्या जरुरत थी । माना कि तुम गोपाल के अंदर में काम करते हो।कैसे रोज भाभी जी तुम्हारे हाथों उसके लिये नित नये व्यंजन बना कर ऑफिस भेजती थी । आज उसी की दी हुई साड़ी उसे पहन कर दिखा रही हैं !!”
नंदीश के दिमाग में शक के बीज डालकर वह तो अपने घर चला गया ।पीछे छोड़ गया शक का ज़हरीला कीड़ा ।
आधी रात में चींख सुनकर बच्चे दौड़ कर माँ पापा के कमरे में आये ।पिता के मुँह से झाग निकलते देख कर होशोहवास खो बैठे ।
“माँ पापा ने ऐसा क्यों किया ?”
“बेटे मुझे नहीं पता ।”
सुबह अंतिम विदाई में अपने मित्र की चिता की सौगंध खाई ; “मित्र मेरे मज़ाक ने तेरी दुनिया उज़ाड़ दी सौगंध तेरी खाता हूँ आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तेरे परिवार का सहारा बनूँगा।”
अपनी पीड़ा अपने जघन्य अपराध की सजा में तिल-तिल कर आजीवन जलता रहा ।जीवन का एक मात्र लक्ष्य सुदर्शना एवं उसके बच्चों की अपरोक्ष रुप से मदद बना लिया।
आज भी उसे सच स्वीकार करने की हिम्मत नहीं थी ।शर शय्या के माफिक शूल उसे बेध रहे थे।
जोरों की खाँसी उठी ;पानी के छींटे “ओह लगता है किसी ने हमारी सुधि ली है।शायद मेरी सेवा देखकर प्रभू का मन द्रवित हो गया ।
“कौन?”
जाना-पहचाना स्वर सुनकर आँखें शर्म से मुँद गई।
“मुझे पता है मेरी जिंदगी में आग आपने लगाई थी परंतु एक अपराधी को दंड देने की सजा के बदले हमारे बच्चों का भविष्य सुधर जाय इसीलिये मैं चुप रही ।”
“मौत भी आपसे आँख-मिचौली कर रही है शायद उसे आपका प्रायश्चित कम लगा ।”
अंतिम शब्द-बाण पूरी तरह सुन नहीं पाया आहह….
— आरती रॉय