धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सिक्किम का भूटिया समुदाय

भूटिया तिब्बती मूल के हैं। इन्हें ‘भोटिया’ भी कहा जाता है I इनका मूल निवास स्थान ‘भोट’ (तिब्बत) होने के कारण इन्हें भूटिया कहा जाता है I तिब्बत का प्राचीन भारतीय नाम “भोट” था I इसलिए जो ‘भोट’ अथवा तिब्बत से आया उसे भूटिया कहा गया I 15 वीं शताब्दी के बाद ये लोग सिक्किम में आए । भूटिया मुख्य रूप से सिक्किम के उत्तरी भाग में बसे हुए हैं तथा इस प्रदेश में इनकी आबादी कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है I इन्हें लछेनपा और लाचुंगपा भी कहा जाता है । इन्हें लोपो भी कहा जाता है I भूटिया समुदाय ने अपनी परंपरा, संस्कृति, धर्म आदि के कारण सिक्किम में अपनी एक अलग पहचान बनायी है I यह समुदाय अनेक गोत्रों में विभक्त है I येलोग माँसाहारी होते हैं तथा गोमांस और सूअर का मांस इन्हें अधिक पसंद है I मांस के साथ चावल इनका नियमित भोजन है I वे फल और सब्जियाँ भी खाते हैं I खाना बनाने के लिए वेलोग पशुओं की चर्बी या मक्खन का उपयोग करते हैं I मोमो और थुकपा (नूडल्स) इनके अन्य खाद्य पदार्थ हैं । पिता परिवार का मुखिया होता है I परिवार में लड़कियों की कोई निर्णायक भूमिका नहीं होती है I पिता की मृत्यु के बाद माता परिवार का उत्तरदायित्व संभालती है I इस समुदाय में जन्म संबंधी संस्कारों का विधिवत पालन किया जाता है I जन्म के बाद माँ- बच्चे का जल से स्नान कराया जाता है I उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों से अलग रखा जाता है I जन्म के बाद नवजात बच्चे को थोड़ा मक्खन और शहद की कुछ बूँदें दी जाती हैं I दूसरे दिन से उसे मक्खन के साथ चावल का आटा दिया जाता है I जन्म के तीन दिनों के बाद लामा द्वारा माँ और बच्चे का शुद्धिकरण संस्कार कराया जाता है जिस अवसर पर परिवार के सभी सदस्य एवं सगे – संबंधी एकत्रित होते हैं I इस समय बच्चे का नामकरण भी किया जाता है I लामा द्वारा बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना की जाती है I भूटिया सिक्किमी भाषा बोलते हैं जो तिब्बती भाषा की एक बोली है। लेपचा समुदाय की अपेक्षा भूटिया बड़ी संख्या में गाँवों में बसे हैं। भूटिया घर को ‘खिन’ कहा जाता है जो आम तौर पर आयताकार होता है। पुरुषों की पारंपरिक पोशाक को ‘बाखू’ कहा जाता है जो पूरी आस्तीन के साथ ढीले कपड़े का एक प्रकार है। महिलाओं की पोशाक में सिल्क की ‘होंजू’ शामिल है जो पूरी आस्तीन की ब्लाउज और ढीला गाउन होता है। महिलाओं को शुद्ध सोने से बने भारी गहनों का बहुत शौक है। भूटिया परिवार में शादी परस्पर बातचीत के माध्यम से होती है। शादी से पहले लड़के का चाचा उपहारों के साथ अपने भतीजे के लिए हाथ मांगने लड़की के घर जाता है। भूटिया समाज में शादी– विवाह एक खर्चीला और जटिल संस्कार है I माता – पिता और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा अधिकांश विवाह आयोजित किए जाते हैं I विवाह की पहल वर पक्ष की ओर से की जाती है I सर्वप्रथम वर पक्ष की ओर से लड़के के चाचा या किसी भरोसेमंद व्यक्ति को लड़की के माता –पिता और लड़की की इच्छा जानने के लिए भेजा जाता है I गाँव के दो– तीन और व्यक्ति भी उनके साथ होते हैं I इसे दिचंग कहा जाता है I उपहार के रूप में वे अपने साथ मदिरा लेकर जाते हैं I उनके साथ ज्योतिषी भी जाते हैं जो लड़के– लड़की की कुंडली का मिलान करते हैं I वे विवाह की शुभ तिथि भी बताते हैं I कुछ औपचारिकताओं के बाद यह दल वापस आ जाता है I यदि तीन दिनों के भीतर कन्या पक्ष मदिरा लौटा देता है तो समझा जाता है कि लड़की के माता– पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं है, लेकिन यदि तीन दिनों के भीतर कन्या पक्ष द्वारा मदिरा नहीं लौटाई जाती है तो मान लिया जाता है कि उन्हें विवाह का प्रस्ताव मंजूर है I इसके बाद ‘खचन’ की तैयारी की जाती है I इसके बाद ‘नंग– चंग’ का आयोजन होता है जिसमें मध्यस्थ पुनः एक बार लड़की के घर जाता है और उसके चाचा से लड़की के लिए माँग के बारे में जानकारी प्राप्त करता है I माँग में नकद रुपए, सूअर, एक बोरा चावल, मदिरा, आटा, चाय, मक्खन आदि वस्तुएं शामिल होती हैं I इसके बाद विवाह की तिथि निश्चित की जाती है I विवाह समारोह में सगे– संबंधियों, मित्रों और पड़ोसियों को आमंत्रित किया जाता है I लामा द्वारा विवाह संपन्न कराए जाते हैं I सभी आमंत्रित अतिथि और रिश्तेदार खाते– पीते और नाचते– गाते हैं I सभी आमंत्रित अतिथि और ग्रामीण दूल्हा– दुल्हन को उपहारों के साथ सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]