खुली खिड़कियां
बहुत प्यार से अपना नीड़ सजाया था सुमि ने। होनहार बच्चे आज सफलता का मुकाम छू रहे थे। इतने व्यस्त थे कि मां से भी कभी कभार ही बात हो पाती थी।
समय बिताने के लिए अक्सर सुमि बंद खिड़कियों से झांक लेती थी। आज भी सुबह – सुबह वह खिड़की से बाहर के दृश्य देख रही थी कि नजर एक अकेले बैठे पक्षी पर जा रुकी।
“इतने ध्यान से बाहर क्या देख रही हो?” सैर करके वापिस आए राहुल ने चहक कर पूछा।
“कुछ नहीं! बस,आईना देख रही हूँ।” अकेलेपन का दर्द झेलती सुमि भरी आंखों से बोली।
“जरा इन बंद खिड़कियों को खोल कर तो देखो।” बरसों से बंद पड़ी खिड़कियों को खोलते हुए राहुल बोले।
सच में ही, बगल के ही पेड़ पर न जाने कितने पक्षी चहचहा रहे थे।
अंजु गुप्ता
हिसार