कविता

/ भारत रत्न बाबा साहब अंबेडकर /

जन्म हुआ था, महार जाति में
विकास हुआ था, विश्वनर के रूप में
वर्ण के साथ, वर्ग के साथ,
जाति के साथ मत जोड़ो
पूजा मत करो, देवता नहीं
मानव हैं वे मानवता के बोध हैं
भेद – विभेदों का जाल तोड़ो
समता – बंधुता, भाईचारा भर लो
अंधकार को चीरते हुए
निकल आया है सूरज बनकर
फैलने लगी है उनकी विचारधारा
पढ़ाई की इस दुनिया में
नव समाज के बीज बोते रहो
तोड़ो, जात – पांत, पाखंड आचार
श्रम के साथ चलो, अपना कुछ बनो
ऊँच – नीच कोई नहीं यहाँ
हरेक का अपना अलग महत्व
मान – सम्मान, अस्मिता की चेहरा
सबका होने दो.. सबका होने दो
स्वार्थ का पर्दा हटाओ
यथार्थ के धरातल पर
देखो, विशाल जग को
कोई पराया नहीं, अपने हैं सभी।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।