देखा जो तुमने हुआ यह असर
रंग ही रंग फ़िजा में गये बिखर।
कुछ गुलाबी नीले लाल पीले
चाहत के रंग ही रंग सपनीले
जैसे इंद्रधनुष में लग गया हो शर
छटाएँ हुलसकर जाए निखर।
मन के उत्तुंग शिखर से निकली
प्रेम पारावार संग मिलने चली
स्वप्न सरिता बही उछल उछलकर
कुछ दूधिया, कुछ मूंगिया सफ़र।
मधु पूरित ख्याल मादकता भरते
कातर नयन प्रणय निवेदन करते
हो जाए निहाल पा नेह दृष्टि मगर
जानते हैं, नहीं सुकर यह प्रेम डगर।
आँखों ही आँखों में रँग लिपट गये
आकुलता में सकुचाकर सिमट गये
प्रीत हमजोली से ही बचाकर नज़र
जगमग हो उठे प्रेम के सुनहले नगर।
— डॉ. अनिता जैन ‘विपुला’