कैकेयी के राम
कितना सरल है
कैकेयी के चरित्र को
परिभाषित करना,
स्वार्थी, लालची, पतिहंता
कहना, लांछन लगाना
पुत्रमोही को अपमानित
उपेक्षित करना।
बड़ा सरल सा है ये सब
जो दुनिया को दिखता है,
सारा जग यही तो कहता है।
बस ! नहीं दिखता है तो
कैकेयी का वास्तविक चरित्र
जिसके कारण राम राम से
मर्यादा पुरुषोत्तम राम बन गये।
सारे संसार में,जन जन में
कण कण में बस गये।
कितना मुश्किल रहा होगा वो पल
जब अपने प्राणों से भी प्रिय
राम को वन गमन कराया,
पति मृत्यु का लाँछन
अपने माथे पर लगवाया।
कोखजाये की उपेक्षा सहना
जनमानस की नजरों में
एकाएक गिर जाना,
परंतु संकल्प, स्वाध्याय से
तनिक भी विचलित न होना
जीते जी मृत्यु सा अहसास करना
एक राजरानी का
चहुँओर से चलते
जहरीले व्यंग्य बाण सहना
फिर भी न विचलित होना
आसान नहीं था।
बस एक आस, विश्वास था
कौशल्या सुत राम
साक्षात विष्णु का अवतार था,
कौशल्या को कैकेयी पर
अटल विश्वास था,
राम पर कौशल्या से अधिक
कैकेयी का अधिकार था
तभी तो कैकेयी के अंदर
इतना आत्मविश्वास था।
तभी तो माँ की ममता
ममताहीन हो गयी,
अपने सिर पर कलंक ले
दो वचनों की आड़ ले
जिद पर अड़ गई,
कैकेयी ही थी जो राम को
मर्यादा पुर्षोत्तम राम बना गई,
वंश,कुल अयोध्या ही नहीं
सकल जहां को उनका
तारणहार दे गई।
राम के साथ साथ कैकेयी
खुद को भी अमर कर गई,
राम को सिर्फ राम न रहने दिया
रामनाम का जीवनमंत्र
कण कण में बसा गई,
राम को राजा राम के बजाय
मर्यादा पुर्षोत्तम राम बना गई,
कलंक का बोझ उठाया फिर भी
दुनिया राममय कर गई
अयोध्या को अयोध्या धाम कर गई
जगत में नाम कर गई।