लघुकथा

कन्या पूजन

बहुत कोशिश की दोनो ने एबॉर्शन करवाने की जब पता चला कि इस बार भी निशा के पेट मे जो बच्चा पल रहा है वो भी लड़की है। लेकिन जिस बच्चे ने इस दुनिया मे आना है वो तो आकर ही रहता है।
शादी के बाद जब पहली सन्तान बेटी हुई तो दोनो ने उसे खुशी खुशी स्वीकार कर लिया। बेहद लाड़ प्यार में पली बड़ी बेटी।लेकिन दूसरी बार बेटे की चाह इस कदर हावी हो गयी थी कि जब जांच में पता चला कि इस बार भी आने वाला बेबी लड़की है तो दोनो बहुत हताश हो गए। निशा  के पति रंजीत ने इस बच्चे को दुनिया मे नही लाने का फैसला किया और डॉक्टर से टाइम ले लिया। उसकी फीस भी जमा करा दी।लेकिन ऐन वक्त पर डॉक्टर को किसी इमरजेंसी केस के लिए जाना पड़ा।
फिर कुछ दिन कभी बड़ी बेटी के एग्जाम और कभी रंजीत के बिज़नेस की वजह से दोनो ऐसे उलझे कि डॉक्टर पास जाने के लिए समय ही नही निकाल पाए।
और जब डॉक्टर पास गए तो उसने कहा कि अब समय निकल चुका है और एबॉर्शन करने से साफ इंकार कर दिया। मजबूरन उन्हें उस बच्ची को इस दुनिया मे लाना ही पड़ा। उस बच्ची के आने पर ना तो कोई खुशी मनाई गई और ना ही कभी उसका जन्मदिन मनाया गया।
लेकिन जैसे जैसे वो छोटी बेटी बड़ी होने लगी वो इतनी प्यारी और क्यूट होती गयी कि हर कोई उसे बहुत ज्यादा प्यार करता। पढ़ाई में भी वो  शुरू से ही क्लास के बाकी बच्चों हमेशां आगे रहती। उसने अपनी प्यारी बातों से अपने पापा को अपने साथ खूब प्यार करने के लिए मजबूर कर ही लिया। शुरू से ही पापा साथ सोना, पापा के घर आने पर उनके साथ साथ ही रहना। बड़ी बेटी से कहीं ज्यादा सुंदर और प्यारी बच्ची सबकी लाडली बन गयी
आज नवरात्रि की अष्टमी है मतलब कन्यापूजन का दिन। निशा जल्दी जल्दी तैयारी में लगी है क्योंकि उसने पति के आफिस जाने से पहले कन्याभोज करना है। जल्दीसे सारा सामान त्यार करके निशा ने रंजीत को बोला,”आप जल्दी से कन्याओं को ले आइए मैं बाकी तैयारी कर लेती हूं ।
रंजीत लड़कियों की तलाश में सारा मोहल्ला और आसपास सब जगह खोज आया उसको कहीं भी कन्या भोज के लिए लड़कियां नही मिली। क्योंकि जो एक दो लड़कियां थी उनको पहले से कोई और ले जा चुके थे। जब वो खाली हाथ घर वापिस आया तो निशा परेशान हो गयी, अब क्या करें। रंजीत के दफ्तर जाने का समय हो रहा था और उन्हें समझ नही आ रहा था क्या करें। अंत में दोनो ने मिल कर फैसला लिया। कुछ ही पल बाद दोनो मिल कर अपनी दोनो बेटियों को कन्याभोज के लिए बिठा कर उन्हें तिलक लगा रहे थे और उनके हाथों में मोली बांध कर लाल चुननी ओढ़ा रहे थे।
— रीटा मक्कड़