सहित्य की लहरों का तट है सोशल मीडिया
“साहित्य समाज का दर्पण है,” यह उक्ति सदियों से उदहारण के रूप में प्रस्तुत की जाती रही है और आज भी मौखिक – लिखित रूप में सर्वग्राही है। साहित्य का सृजन युगानुरूप होता है, भोज पत्रों से चलता हुआ आज सोशल मीडिया पटल पर सतत रूप से अपने अस्तित्व को कायम रखे हुए है। काव्य शास्त्र में काव्य के कई प्रयोजन हैं यश, अर्थ, लोककल्याण, अनिष्ट का निवारण, आत्म सन्तुष्टि आदि। साहित्यकारों का कोई भी प्रयोजन हो,लेकिन साहित्य का मूल स्वभाव आत्मा के गुण से मेल खाता है और वह है आनंद। साहित्य की कोई भी विधा हो, रचनाकार अपनी कृति को पूर्ण करने के उपरांत अपने पाठकों – श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए उत्सुक रहता है, वह अधिक से अधिक रसिकों को परोसना चाहता है। सोशल मीडिया के चलन से पूर्व पांडुलिपि और फिर प्रकाशित होकर पत्र – पत्रिकाओं और पुस्तकों में आता था, बहुत समय लगता था। आज रचनाकार के लिए सोशल मीडिया सबसे सुलभ और सस्ता प्लेटफॉर्म है या यह कहें बहुसंख्यक पाठकों तक वह अपनी रचनाओं को द्रुत औऱ कम समय मे प्रस्तुत कर देता है। परिमाण स्वरूप उसे लाइक -कमेंट्स जैसा कि ऊपर स्पष्ट है कि काव्य- प्रयोजन के सम्बंध में, उसे यश और आत्म सन्तुष्टि प्राप्त होने लगती है।
जब साहित्यकार के हृदय से सृजन की लहरें ज्वार- भाटा की तरह उठती हैं तब वह सोशल मीडिया के तट पर टकराकर तमाम रत्न छोड़ जाती हैं जो परखने वाले के लिए अमूल्य निधि होती है।
अतः कहा जासकता है कि साहित्य चाहे पुस्तक के पृष्ठ पर हो या सोशल मीडिया के पृष्ठ पर। सकारात्मक और आनंददायक ही होता है। आज सोशल मीडिया पर प्रस्तुत साहित्य हर स्तर का है, यह कोई नयी बात नहीं है, साहित्य सतत साधना से सिद्ध होता है, अगर उच्च स्तरीय नहीं भी है तो अभ्यास और सतत अध्ययन से अवश्य ही स्तरीय होगा।
— डॉ. शशिवल्लभ शर्मा