गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सच्चाई का ज़िक्र छिड़ा जब महफ़िल में।
लोग बहुत से दिए दिखाई मुश्किल में।

सिर्फ़ डुबोने की ही आदत है जिसकी,
ढूँढ रही वो मौज सहारा साहिल में।

कोशिश तो की ही होगी मकतूलों ने,
शायद थोड़ा रहम बचा हो क़ातिल में।

बात तिरंगे की आई जब होंठों पर,
एक अजब सा जज़्बा पाया हर दिल में।

‘राहगीर’ तो राहों का ही आशिक है,
उसे नहीं दिलचस्पी कोई मंज़िल में।

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)