पद्ममाला छंद “माँ के आँसू”
आँख में अश्रु लाती हो।
बाद में तू छुपाती हो।।
नैन से लो गिरे मोती।
आज तू मात क्यों रोती।।
पुत्र सारे हुए न्यारे।
जो तुझे प्राण से प्यारे।।
स्वार्थ के हैं सभी नाते।
आँख में नीर क्यों माते।।
रीत ये तो चली आई।
हैं न बेटे सगे भाई।।
व्यर्थ संसार में सारे।
नैन से क्यों झरे तारे।।
ईश की आस ही सच्ची।
और सारी सदा कच्ची।।
भक्त की टेक ले वे ही।
धीर हो सोच तू ये ही।।
==============
लक्षण छंद:-
“रारगागा” रखो वर्णा।
‘पद्ममाला’ रचो छंदा।।
“रारगागा” = [रगण रगण गुरु गुरु]
(212 212 2 2)
8 वर्ण/चरण,4 चरण, 2-2 चरण समतुकांत।
***************
— बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’