कविता

मजदूर हूँ मजबूर नहीं

माना कि मैं मजदूर हूँ
पर इसका मतलब ये तो नहीं
कि बहुत मजबूर हूँ।
मैं हिम्मत ,हौसला रखता हूँ
ईमानदारी से श्रम करता
पसीना बहाकर कमाता हूँ,
अपनी किस्मत को नहीं कोसता हूँ,
मेहनत की कमाई से
परिवार पालता हूँ।
माना कि बहुत दूश्वारियां हैं,
हमारे जीवन में
पर इसमें मेरा कसूर क्या है?
आप बड़े लोग हैं तो क्या हुआ
दूश्वारियां आपके जीवन में
कुछ कम तो नहीं हैं।
सबकी अपनी अपनी
विवशता,लाचारियां,दूश्वारियां हैं,
ऐसा कौन है जो
कहीं न कहीं मजबूर नहीं है।
पर हमारे हौसले बुलंद हैं
हाँड़ तोड़ मेहनत करते
ईमानदारी से अपना परिवार पालते,
जितना है उतने में ही खुश रहते,
चोरी, बेईमानी का भाव
कभी मन में नहीं लाते,
खूद पर भरोसा रखते
ईश्वर में विश्वास करते
हरहाल में खुशहाल रहते,
थककर चूर जरूर होते हैं
मगर मस्त रहते हैं,
धन से कमजोर भले हैं
पर मन से मजबूत हैं,
मजबूर नहीं है हम
हाँ ,मजदूर जरूर हैं
फिर भी आपने आपमें खुश हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921