कविता

मज़दूर

1.*यहां कई लोगों के कुत्ते भी दूध पीते हैं
दिन में कई बार।
और मजदूरों के बच्चे अकसर
भूखे सो जाते हैं कई बार”
2.*हमने देखा है कि सूखी रोटी खाने वाला मजदूर
कितना आराम से सो जाता है,
बात-बात पर कितनी गालियां खा जाता है!
ए.सी. की हवा खाने वाले अमीरों का अपना
सुकून खो जाता है,
दिन में कितनी गोलियां खा जाता है!
3.*जो अपने पसीने की स्याही से उकेर देते हैं यहां अनेक सुंदर चित्र।
देखो तो सही उन्हीं की दुनिया कितनी हो जाती है विचित्र।
4.*वे काम करते-करते कितने थक गए!
रात को कितनी करवटें ली।
सुबह सूरज उगा तो सब भूल गए।
5.*वो अक्सर दिन को मजदूरी में
अपना रोजगार देखता है।
रात कब कट जाएगी
दिन का ख्वाब देखता है।
6.*मालिक कौन था कौन हो गया।
गलतफहमी में जीता है
अपने को वो भगवान से कम नहीं समझता है
जो खून पसीने को एक करता उसे इंसान तक नहीं समझता है
और वो महलों में सोता है
सच में नींद तक नहीं ले पाता।
सिर्फ वह मजदूर ही होता है जो सब कुछ करके भी भूल जाता है।
रात में आसमान तले मेहनत की
चटाई बिछा कर सो जाता है।
गिनता है आसमान में उम्मीद के तारों को अपना समझ कर।
सुबह होने तक इस आस में भोर की किरण को।
अपने को लुटाकर, परिवार बसाने को।
जो अपने को मालिक कहता है,
समझ का अंधा हो जाता है।
वो कर्म देवता को कई बार लूट लेता है।
ईश्वर की लाठी में आवाज नहीं प्रहार है।
कब हिसाब मांग ले?वो कितना अनजान है!
7.* जो रात- दिन करते हैं मेहनत-पसीना एक,
हमने उनके हाथों में छाले देखे हैं।
चोर,उचक्के, गुंडे, बदमाश, रिश्वत, ठगी, लूटपाट करने वाले शातिर अपराधियों को भी हमने सरकारों को पालते हुए देखे हैं।
8.* मेहनत को मजदूर जान हथेली पर रखता है।
तब जाकर कहीं परिवार पलता है।
9.* उसे कितना मजबूर कर देते है वे मजबूर समझकर।
वह तो अपनी रोटी का हक मांगता है
हक समझकर।
10.*वह कभी हाथ नहीं फैलाता हक छोड़कर।
कई अवसर गवां देता है।
अपनों से बड़े-बड़ों को देखकर।
दुनिया को सजाने वाला वह एक रचनाकार है।
वह खुदा का भेजा हुआ सच में सृजनकार है।
11*हर कोई सोच लेता है
अपने ठहरने के लिए
अपना-अपना ठिकाना,
उनके ठिकानों को बनाने में
भूल जाता है अपना ठिकाना।
12.*यहां पर पढ़े-लिखे मजदूर हैं बहुत।
उनका शोषण करने वाले भी हैं बहुत।
पढ़ने में आधी जिंदगी काट देते हैं।
रोजगार में पूरी जिंदगी तोड़ देते हैं।
13.*जो सर्दी, गर्मी, बरसात को
हंसते-हंसते सह लेता है।
रोजगार की तलाश में
शहर-शहर ढूंढ लेता है।
अपने खून-पसीने को सदा
एक कर देता है।
श्रम की शक्ति से
सृजन को साकार कर देता है
अपने विवेक और भुज बल से
दुनिया बदल देता है।
क्यों उनको सरकारें आज तक
नहीं बदल सकती हैं।
रात-दिन जग, थक कर भी।
मैला गंदा होकर भी।
औरों की सूरत बदल देता है।
उस मजदूर को कौन मजबूर कर देता है???
14.*वह हर रोज चौराहे पर बिकता है सामान की तरह।
रोजगार की तलाश में टकटकी लगाए बैठा है शिकार की तरह।
काम निकल जाने के बाद लोग कर देते हैं बेकार की तरह।
हर रोज अपने को बेच देता है चंद पैसों में पशु की तरह।
परिवार पालने में पसीना बहा देता है पानी की तरह।
छोटी सी-छोटी खुशी में भी खुश हो जाता है बच्चे की तरह ।
सुबह घर से निकलता सूरज की तरह।
रात में सो जाता जैसे मां की गोद में बच्चे की तरह।
अपने हाथों को बना देता है हथौड़े की तरह।
अपनी जान को डाल देता है कर्म रूपी
उफनते दरिया में नाविक की तरह।
— डॉ. कान्ति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773