हलधर
जान लड़ा जो अन्न उगाता,कृषक कहाता है,
सकल देश को धन्य कराता,कृषक कहाता है।
सकल देश को धन्य कराता,कृषक कहाता है।
आँधी,तूफाँ,गरमी,वर्षा,हर मौसम जो श्रम करता,
कर्मठता का नीर नहाता,कृषक कहाता है।
कर्मठता का नीर नहाता,कृषक कहाता है।
धरती माँ का सच्चा बेटा बनकर जो रहता,
पानी जैसा स्वेद बहाता,कृषक कहाता है ।
पानी जैसा स्वेद बहाता,कृषक कहाता है ।
शहरों से जो दूर रहे,पर सबकी ख़ातिर,
माटी से नित प्यार जताता,कृषक कहाता है।
माटी से नित प्यार जताता,कृषक कहाता है।
पीर,दर्द,ग़म,तकलीफ़ों में,कभी नहीं मुरझाता,
नित साहस के गीत सुनाता,कृषक कहाता है।
नित साहस के गीत सुनाता,कृषक कहाता है।
बहुत काम पर,पैसा सीमित,कद्र न होती है,
पर हर मुश्किल को पी जाता,कृषक कहाता है।
पर हर मुश्किल को पी जाता,कृषक कहाता है।
नहीं शिकायत कोई जिसको,हर हालत में खुश,
हर इक को जो हरदम भाता,कृषक कहाता है।
हर इक को जो हरदम भाता,कृषक कहाता है।
अर्थव्यवस्था का निर्माता,श्रम सीकर जो,
‘जय किसान’ का मान निभाता,कृषक कहाता है।
‘जय किसान’ का मान निभाता,कृषक कहाता है।
वह तो सबके हित का सोचे,पर बेवश,
तो भी सब हित भाव जगाता,कृषक कहाता है।
तो भी सब हित भाव जगाता,कृषक कहाता है।
सरकारें और हम सब सोचें,हित साधें,
कर्तव्यों का भाव जगाता,कृषक कहाता है ।
कर्तव्यों का भाव जगाता,कृषक कहाता है ।
— प्रो.(डॉ) शरद नारायण खरे