सामाजिक

आशाओं का दीपक

जीवन में आशाओं का संचार जीवन को चलायमान रखता है।जब जब हम निराशा के भँवर में फँसते है ,कुछ न कुछ निश्चित खोते हैं,चाहे अपना या साथ में परिवार का सुख चैन ही सही।
उम्मीद की किरणें जब तक हैं तभी तक संसार में हमारा मतलब है,अन्यथा हमारे होन का………..सिर्फ़ ही शून्य है।
चिंतन कीजिए और अपनी कृत्यों, विचारों और स्व निर्माण से लोगों की आशाओं के बुझते दीपक में हौसले का तेल डालिये। सृजक होने का दायित्व बोध महसूस कीजिए और अपनी जिम्मेदारी निभाइए।
आज के इस कठिन माहौल में आप जनमानस की सर्वाधिक अपेक्षाएं कलमकारों, कलाकारों, सामाजिक चिंतको/विचारकों और संवेदनशील प्राणियों पर टिकी हैं।
वस्तुतः तो हर जिम्मेदार नागरिक की जिम्मेदारी इस कठिन और भयावह होते माहौल में सहजता, समरसता, सरलता और सहयोग के साथ वसुधैव कुटुम्बकम् जैसी भावना के दीपक मे आत्मविश्वास की बाती और जीतने के जज्बे का तेल डालकर प्रज्वलित कर नया वातावरण विकसित करने में एकजुटता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करें।तभी आशाओं का दीपक हर प्राणी के भीतर विश्वास का प्रकाश सुनिश्चित करता प्रतीत होगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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