हर मुहल्ला हर गली ख़तरे में है
आजकल हर आदमी ख़तरे में है
घेर रक्खा है ग़मों के झुंड ने
एक छोटी सी ख़ुशी ख़तरे में है
कैसे कर पायेगा रोगी का इलाज़
चारागर की ज़िंदगी ख़तरे में है
इक ग़लतफ़हमी के पैदा होने से
दोस्तों की दोस्ती ख़तरे में है
इतनी सारी बंदिशें हैं वस्ल में
हिज्र की पाकीज़गी ख़तरे में है
अब ग़ज़ल में ग़ज़लियत बाक़ी कहाँ
अब ख़याल ए नाज़ुकी ख़तरे में है
चौन्धियाती रोशनी से अब अजय
आँखों की ये रोशनी ख़तरे में है
— अजय अज्ञात