असफलता संग व्यथा रही
असफलता संग व्यथा रही।
मेरे जीवन की कथा रही।।
पीड़ा से पीड़ित था बचपन।
भय से भयभीत था, छुटपन।
किशोर हुआ, अभाव मिले नित,
युवावस्था भी, थी बस ठिठुरन।
अकेलेपन की सजा रही।
मेरे जीवन की कथा रही।।
किसी को कुछ भी दे न सका।
साथ आया जो, वही पका।
भटकर को ना, राह मिली,
टूटा सपना, पर नहीं थका।
राह ही जिसका, पता रही।
मेरे जीवन की कथा रही।।
राह में कुचली कली मिली।
दुलारा उसको, वही खिली।
राह अलग, उसको था जाना,
नहीं कभी वह, हिली-मिली।
साथ हमारे, बस सजा रही।
मेरे जीवन की कथा रही।।
आदर्शो की कुछ राह चुनीं।
अपनों की भी, नहीं सुनी।
संघर्ष पथ पर साथ था खोजा,
मिली न अब तक कोई गुनी।
कोशिशों की बस कज़ा रही।
मेरे जीवन की कथा रही।।