सुरक्षित हाथ
सम्पूर्ण विश्व कुरुक्षेत्र बना हुआ है, युद्ध करते साल भर से अधिक व्यतीत हो चुके हैं । चहुंओर त्राहिमाम त्राहिमाम के स्वर स्फुरित हो रहे हैं । समरांगण में अनेकानेक वीर योद्धाओं के होते हुए भी युद्ध थमने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं ।
चारपाई पर लेटे वृद्ध पितामह अन्न जल त्याग दिये थे । पिता के रहते अगर पुत्र मौत के आगोश में चला जाये तो पिता जीते जी निष्प्राण हो जाता है । कमरे में लेटे-लेटे सुन कर भी मदद को अपने हाथ आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे ।
बहू फोन पर लगातार किसी से बात कर रही थी ।
“मानवता के नाम पर मेरे अबोध और अजन्मे शिशु के पिता को बचा लो ।”
प्राणवायु अपनी सांसों में भरकर अपने पति की सांसों में भरते भरते स्वयं अचेत हो गई । तभी आवाज सुनाई दी
“बहन चिंता मत करो, ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम हो गया है और तुम्हारे पति को बचाने स्वयं वासुदेव आ गये हैं, प्लाज्मा डोनर के रूप में ।”
पता नहीं बहू को कुछ सुनाई दिया या नहीं, परंतु वृद्ध पितामह सुकून के साथ अपनी आँखें बंद कर लिये ।
सम्पूर्ण धरा अब कोरोना योद्धाओं के हाथों में सुरक्षित है, जिन्हें सर्वप्रथम सुरक्षा कवच के रूप में कोवैक्सीन की खुराक मिल चुकी है ।
देर जरूर हो रही है,पर अंधेर अब नहीं होगा ।
— आरती रॉय