कविता

कथनी करनी

समय बदला ,लोग बदले
आचार, विचार, व्यवहार बदले,
रहन सहन का अंदाज बदले
संस्कृति, सभ्यता, संस्कार बदले।
जब सब कुछ बदल ही रहा है तब
कथनी करनी भी बदल रही है
इसमें आश्चर्य कैसा?
लोगों की सोच,मानसिकता भी तो
कितनी बदल गई है,
सच्चे, ईमानदारों की कहीं
इज्ज़त भी तो नहीं है।
सच्चाई की राह पर चलने वाला
बेवकूफ माना जाता है,
मुँह में राम बगल में छूरी वाला
बड़ा सम्मान पाता है।
अब तो दुनियां का दस्तूर हो गया है
कथनी करनी में बड़ा अंतर हो गया है।
हम आप भी तो यही चाहते हैं
करनी करनी में भेद जो नहीं करते
आप ही बताइए तो भला
कहाँ उनका सम्मान बढ़ रहा है?
अब कथनी करनी की बातें
किताबों में ही अच्छी लगती हैं,
वास्तविकता में तो बस
कोने में पड़ी रद्दी से अधिक
भाव कहीं नहीं पाती हैं।
कथनी करनी में अंतर
आज शगल बन रहा है,
जो जितना अंतर कर पा रहा है
वैसा ही स्थान बना पा रहा है।
ईमानदारी के तमगे से
सम्मानित हो रहा है,
कथनी करनी में भेद से
जो जो भी डर रहा है,
आँखे फाड़कर देख लीजिए
हर ओर धक्के ही खा रहा है।

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921