कविता – नारी जीवन
समर्पण की तुँ मूरत है
दया की भोली सूरत है
तेरी आँचल में सब की जहान
नारी तुँ देवी है महान
गृहस्थी की तूँ धुरी है
मेहबूबा है तूँ नूरी है
माँ बहन पत्नी का रूप
दुर्गा काली लक्ष्मी स्वरूप
जान हथेली पर ले माँ है बनती
ससुराल की वंश बेल है गढ़ती
तेरी कुरबानी की हम हैं कर्जदार
हे नारी तुम्हें उदय किशोर का नमस्कार
खुद भुखा रह बच्चे को है पालती
सती सावित्री बन साधक बन जाती
तेरी आँचल तले ममता की संसार
कायनात की तुँ सर्वोत्तम उपहार
माता बन सीने से लगाती
पत्नी बन सुख दुःख की साथी
तेरी सर्मपण पे हम हैं शर्मसार
हे नारी तुम बिन अधुरा संसार
वासना की भेड़िये से हो जाती शिकार
दहेज लोभी से तुँ है लाचार
उठाओ खड़ग कर आतताईयों का संहार
हे नारी रणचन्डी बन करो संहार
माता पिता तज ससुराल तुँ आई
पराये घर को खुशियों से सजाई
मांग में सिन्दूर भर दुल्हन कहलाई
परिजन छोड़ नई दुनियॉ बसाई
तेरी रहमत है उपकार
तुँने दिया पुरूषों को प्यार
तुमसे जग में पनपा है प्यार
पर समाज ने बना दिया व्यापार
— उदय किशोर साह