कविता

माँ तो बस ‘माँ’ होती है

न भाजपाई हूँ,
न कांग्रेसी !
न कामरेड,
न बसपाई,
न केजरीवाई !
न लालूआई,
न मुलायमलाई !
चाय-नाश्ते छोड़े हुए
साल हो गए….
कोई भी पूछने नहीं आए
कि चाय-नाश्ता
क्यों छोड़े हो ?
इसलिए तो मैं
किसी पार्टी-पॉलिटिक्स में
शामिल नहीं हूँ !
ये ‘पार्टी’ देने पर ही
लोग खाने को जाहिश
और ख्वाहिश है न !
मैं दोपहर का भोजन में
चीनीवाला ‘हलवा’ नहीं,
नमकवाला हलवा
यानी उपमा भी नहीं,
अपितु सत्तू खाता हूँ !
माँ, मातृभूमि, मातृभाषा
इसकी कदर होनी ही है
कि मनु कहीस “मेरी माँ !
चाहे कुरूप हो या सुरूप !
यानी माँ तो माँ है ,
सार्थ समाँ है ;
पड़ोस की आँटी-
चाहे हो
कितनी ही सुन्दर ?
पर अपनी माँ
बस माँ होती है ।”
××××

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.