कविता

पूरे दाल ही उजाला है

मोटापा न तो रोग है,
ना ही आनुवंशिक
या प्राकृतिक विपदा !
यह खुद के असंयमित
जीवनचर्या से होता है
या होती है !
इनसे आगे कहूँ तो
जब मनुष्य के
पूर्वज बन्दर थे,
तो उसके वंशज
सुन्दर कैसे हो गए ?
दाल में काला है
या सम्पूर्ण दाल ही
उजाला है !
क्या सचमुच में
मनुष्य के पूर्वज बन्दर थे ?
उत्तर जानता,
तो पूछता ही क्यों, भाई ?
किसी ने सच कहा है-
हर इंसां को यहाँ,
सुकून भरी एक रात भी,
मयस्सर नहीं होती,
अपनी व्यस्त ज़िंदगी में !
यही तो व्यस्तता है
कि गत वर्ष ‘नाना’ बना था,
इस साल
‘दादा’ भी बन गया !
हाँ, यह दीगर बात है
कि अब भी मैं
‘भीष्म पितामह’ हूँ !
इनसे आगे बढ़कर कहूँ तो
ऐसे रिश्ते-नाते क्या
लाईलाज़ रोग है,
मैं इनका मरीज नहीं !
इनमें अन्वेषण के भाव
मर जाते हैं।
तभी तो किसी ने कहा है-
सपनों को सुलाओ,
तो यादें जाग जाती है !
यादों को सुलाओ,
तो सपने जाग जाती है !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.