कोई साथ नहीं आता है
सच की राह पर
चलने का,
संकल्प लेकर,
चाहा था,
एक साथी।
चाहा, खोजा,
मनाया, प्रेम किया,
अपने आपको,
लुटाया।
बस,
एक ही इच्छा,
सच की राह पर,
साथी का हाथ पकड़,
जब मुश्किल घड़ी हो,
एक-दूसरे का हाथ जकड़,
साथ-साथ चलेंगे।
सच के पथ को,
नहीं तजेंगे।
मूर्ख था मैं,
ना समझ भी,
समझ न पाया।
सच की राह पर तो,
सच भी,
साथ छोड़ जाता है।
अपना साया भी,
साथ नहीं आता है।
खुद को खुद का,
साथ भी नहीं भाता है।
कोई मूर्ख पथिक ही,
सच की यात्रा पर,
साथी का गान गाता है।
वास्तविकता तो यही है,
सच के पथ पर,
पथिक को अकेला ही,
चलना होता है।
कोई साथ नहीं आता है।