कविता

कोई साथ नहीं आता है

सच की राह पर
चलने का,
संकल्प लेकर,
चाहा था,
एक साथी।

चाहा, खोजा,
मनाया, प्रेम किया,
अपने आपको,
लुटाया।
बस,
एक ही इच्छा,
सच की राह पर,
साथी का हाथ पकड़,
जब मुश्किल घड़ी हो,
एक-दूसरे का हाथ जकड़,
साथ-साथ चलेंगे।
सच के पथ को,
नहीं तजेंगे।
मूर्ख था मैं,
ना समझ भी,
समझ न पाया।

सच की राह पर तो,
सच भी,
साथ छोड़ जाता है।
अपना साया भी,
साथ नहीं आता है।

खुद को खुद का,
साथ भी नहीं भाता है।
कोई मूर्ख पथिक ही,
सच की यात्रा पर,
साथी का गान गाता है।

वास्तविकता तो यही है,
सच के पथ पर,
पथिक को अकेला ही,
चलना होता है।
कोई साथ नहीं आता है।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)