आज हवाओं को हमने
आज हवाओं को हमने अपने से प्रतिकूल लखा,
जीवन रूपी बाला का उड़ता हुआ दुकूल लखा।
दिन प्रतिदिन दुर्दिन से बाजी खेल रहा हूं मैं,
अर्थ रहित बीते जीवन में समय नहीं अनुकूल लखा,
काट रहा हूं मैं दिन गिन प्रतिदिन अर्थाभाव में,
लहरों से जो हार रही मैं बैठा हूं उस नाव में।
मगर भरोसा बाहूबल पर तैर पार मैं जाऊंगा,
राम नाम का लेके बसा हुआ हूं गांव में।।
वो जो ऊपर बैठा है अपनी दृष्टि घुमायेगा,
कृपा पात्र मैं हुआ अगर तो सृष्टि हमें सुहायेगा।
कर्म फल से सिंचित होकर मैं वट वृक्ष बनूंगा जब,
मेरे द्वारा अगणित जीव मोक्ष तलक मुस्कायेगा।।
— प्रदीप कुमार तिवारी