जिनको अपना, समझ रहा था
सब की खातिर, जीकर देखा, खुद की खातिर जीना होगा।
जिनको अपना, समझ रहा था, उनसे ही विष पीना होगा।।
परिवर्तन का, दंभ भरा था।
संवेदना का, दर्द हरा था।
कदम-कदम, ठोकर खाकर भी,
नहीं कभी, संघर्ष मरा था।
अपेक्षा सभी की, पूरी न होतीं, सब कुछ कर, कमीना होगा।
जिनको अपना, समझ रहा था, उनसे ही विष पीना होगा।।
लीक से हटकर, चलता है जो।
समाज का कंटक बनता है वो।
उपलब्धि कितनी भी पा ले,
अंत में अकेला, मरता है वो।
करनी नहीं, किसी से आशा, बहाना खुद ही, पसीना होगा।
जिनको अपना, समझ रहा था, उनसे ही विष पीना होगा।।
अकेले, फिर से बढ़ना होगा।
थकान मिटा, फिर चढ़ना होगा।
निराश मिटा, जिंदा दिल बन,
कर्म का पाठ, फिर पढ़ना होगा।
चिंता छोड़, चिंतन भी तज तू, कर्म ही तेरी हसीना होगा।
जिनको अपना, समझ रहा था, उनसे ही विष पीना होगा।।